Saturday, December 25, 2010 Posted by Om 0 comments »

कुछ लोग सितम करने को तैयार बैठे हैं

कुछ लोग सितम करने को तैयार बैठे हैं
कुछ लोग मगर हम पे दिल हार बैठे हैं
इश्स कशमकश में हम से पहचाने नही जाते,
कहाँ दुश्मन हैं और, कहाँ दोस्त यार बैठे हैं
इश्क़ को आग का दरिया ही समझ लीजिए हज़ूर,
कोई उस पार बैठा है तू, हम इस पार बैठे हैं.
कौन कहता है के इस शहर मैं, सारे हैं बेवफा,
हमारे सामने दो चार वफ़ादार बैठे हैं.
कल तक जिन की हसरत थी हमें बदनाम करने की
आज वही लोग अपने किए पे, शर्मसार बैठे हैं.
दुनिया से रूठ जाने की ख्वाहिश है हमारी,
क्या करूँ इस ख्वाहिश पे पहरेदार बैठे हैं..!!

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