Saturday, December 25, 2010 Posted by Om 0 comments »

मैं ग़ज़ल कैसे कहूँ....

पूछेंगे लोग उनकी बेवफ़ाइयो का सबब
मैं ग़ज़ल कैसे कहूँ
खुलते नही है उनकी रुसवाइयों को लब
मैं ग़ज़ल कैसे कहूँ
ना इश्क़ है ना दर्द लफ़्ज भी है बेअदब
मैं ग़ज़ल कैसे कहूँ
और भी है शहर मे दिल के टूटे हुए जब
मैं ग़ज़ल कैसे कहूँ
हर्फ़ है सूखे हुए और क़लम टूटी है अब
मैं ग़ज़ल कैसे कहूँ....

0 comments:

About Us

Labels 1