Saturday, December 25, 2010 Posted by Om 0 comments »

ज़िंदगी से ज़्यादा मौत बेवफा जिसकी थी..

हवाओ मे घुली हुई वो सदा किसकी थी..
यादे जो सताती थी.. वो तेरे सिवा किसकी थी..
आँसुओ से ही सही… भर गया दामन मेरा..
हाथ जिसके लिए मैने उठाए, वो दुआ किसकी थी.??
अकेलेपन की आदत सी हो चली है मुझको अब तो..
मंज़ूर है मुझे ये सज़ा..पर ये तो बता की खता किसकी थी..
कुछ लोग होते है जिनको मर के ही चैन आता है…
मैं वो बदनसीब हू.. ज़िंदगी से ज़्यादा मौत बेवफा जिसकी थी..

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